जैसे दीपक में तेल न हो, तो वह जल नहीं सकता, वैसे ही ईश्वर न हो, तो मनुष्य जी नहीं सकता ! ईश्वर और जीव का बहुत ही निकट का सम्बन्ध है - जैसे चुम्बक और लोहे का ; तो भी ईश्वर जीव को आकर्षित क्यों नहीं कर पता ? यदि लोहे पर बहुत अधिक कीचड लिपटा हो, तो जैसे  वह चुम्बक के द्वारा आकृष्ट नहीं होता, वैसे ही जीव यदि मायारूपी कीचड में अत्यधिक लिपता हो, तो उस पर ईश्वर के आकर्षण का असर नहीं होता ! फिर जैसे कीचड को जल से धो डालने पर लोहा चुम्बक की ओर खिचने लगता है , वैसे ही जब जीव अवरित प्रार्थना और पश्चाताप  के आशुओं से इस संसार -बन्धन में डालनेवाली माया के कीचड को धो डालता है, तब वह तेजी से ईश्वर की ओर खिचता चला जाता है !

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